राधा तत्व
शास्त्रों और तत्वज्ञानी महापुरुषों का मत है कि राधा कोई भिन्न नहीं अपितु उस परम ब्रह्म श्रीकृष्ण की चेतना शक्ति और आल्हादिनी शक्ति का नाम ही राधा है। राधा और कृष्ण को जिसने भी पाया एक दूसरे से अभिन्न एक रूप में ही पाया। अर्थात राधा को पाया तो कृष्ण को भी पाया और कृष्ण को भी पाया तो राधा को भी पाया।
उस लीला पुरूषोत्तम श्रीकृष्ण के प्रति जो प्रियतम भाव है उनका साकार स्वरूप ही तो राधा है।
उनका माधुर्य, उनकी चितवन, उनका श्रृंगार, उनका हास विलास, उनकी चपलता, उनकी निश्छलता, उनका संगीत, उनका नृत्य, उनका शील, उनकी लज्जा, उनकी करुणा, उन कृष्ण में समाहित इन सब गोपी भावों के उच्चतम स्त्री नाम ही तो राधा है।
इन सभी भावों के बिना उन मधुराधिपति का कोई अस्तित्व भी नहीं। इसीलिए भक्तों ने "राधा के बिना श्याम आधा", "बिन राधा श्याम आधा" को गाया है।
लीला करने के उद्देश्य से ही वो लीलाधर एक से दो रूप हो जाते हैं। बाहरी चक्षुओं से वो दो ही नजर आते हैं लेकिन तत्वत राधा - कृष्ण एक ही रूप हैं।
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शास्त्रों और तत्वज्ञानी महापुरुषों का मत है कि राधा कोई भिन्न नहीं अपितु उस परम ब्रह्म श्रीकृष्ण की चेतना शक्ति और आल्हादिनी शक्ति का नाम ही राधा है। राधा और कृष्ण को जिसने भी पाया एक दूसरे से अभिन्न एक रूप में ही पाया। अर्थात राधा को पाया तो कृष्ण को भी पाया और कृष्ण को भी पाया तो राधा को भी पाया।
उस लीला पुरूषोत्तम श्रीकृष्ण के प्रति जो प्रियतम भाव है उनका साकार स्वरूप ही तो राधा है।
उनका माधुर्य, उनकी चितवन, उनका श्रृंगार, उनका हास विलास, उनकी चपलता, उनकी निश्छलता, उनका संगीत, उनका नृत्य, उनका शील, उनकी लज्जा, उनकी करुणा, उन कृष्ण में समाहित इन सब गोपी भावों के उच्चतम स्त्री नाम ही तो राधा है।
इन सभी भावों के बिना उन मधुराधिपति का कोई अस्तित्व भी नहीं। इसीलिए भक्तों ने "राधा के बिना श्याम आधा", "बिन राधा श्याम आधा" को गाया है।
लीला करने के उद्देश्य से ही वो लीलाधर एक से दो रूप हो जाते हैं। बाहरी चक्षुओं से वो दो ही नजर आते हैं लेकिन तत्वत राधा - कृष्ण एक ही रूप हैं।
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