Monday, January 25, 2021

जीवन बहती नदिया सा हो

जन्म हो जैसे नदी का उगम

धरती मां की उदर से

निकलता शुद्ध पानी का झरा ।

निर्गुण, पवित्र, सहज

दैवीय और मासूम ।

बचपन हो नटखट, चंचल

खिलखिलाती बहती धारा ।

उछल कूद से भरा

पहाड़ों जंगलों से गुजरता

झूमती बेलाओं के संग ।

कहीं घने पेड़ों की छाया में,

तो कहीं मन लुभावने 

झरनों सी काया में ।


कई स्वजन मिले, 

जीवन की राह में ।

जैसे असंख्य धाराएं मिलती,

बहते प्रवाह में ।

जब तक उभरते है ,

पहाड़ों से खेत खलिहानों में ।

बदलाव आए जीवन में,

जैसे ठहराव, प्रवाह में।

मानो हुआ हो परिवर्तन,

बचपन का यौवन में ।

अपनेही धुन में सवार,

 निर्भय नैसर्गिक सुंदरता,

 संगम की ओर बढ़ती धारा ।

 जीवन साथी पाने को बेकरार ,

 मानो प्रयाग दो नदियों का,

 वैसे ही संगम हो, दो जीवन का ।


प्रौढ़ावस्था का आगमन ऐसा हो 

जैसे बहती नदियां, खुद सम्हलते, 

 सबको संवारते, सम्हालते,

खेत, खलिहान, हरीयाली

मछलियां, रंग-बिरंगी 

सांप बिच्छू घड़ीयाल 

जिव-जंतू, पक्षी, प्राणी, 

पूरी सृष्टि निखारती

ना धर्म, ना जात-पात, 

ना वर्ग भेद, ना वर्ण भेद,

सभी की तॄष्णा बुझाती 

सतह पर शांत, भीतर समेटे, 

भूतल का उतार चढ़ाव, 

अनगिनत बाधाये

सबको लिए साथ, अविरांत,

बह निकली गंगा की धारा।

जीवन भी हो,  ऐसा,

मानो गहरे नदी का‌ प्रवाह

सरल, शांत, बहता,  

खेतों खलिहानों के बीच 

जैसे बहते नदी की प्रावस्था ।


जीवन का उत्तरार्ध हो जैसे

नदी करती प्रचंड विस्तार 

अपरिमित यादों को गर्भ में समेटे,

भव्य‌ और विशाल, 

निकली समुद्र की ओर 

करने संपूर्ण समर्पण, 

अथाह अपरिमित सागर में।

जीवन का प्रवाह भी हो वैसे ही

सतह शांत, गंभीर, परिपक्व

मन भव्य, चित्त विशाल

अंतिम सांस तक, मानो

करने संपूर्ण समर्पण,

अग्रसर, अनंत की ओर

निर्गुण निराकार अंबर में।।

 

***

कर्नल वसंत बल्लेवार
वसंत आरबी


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