Thursday, November 12, 2020

अंधे, पर मनसे

 'अंधे, पर मनसे' is my new composition presenting on Gandhi Jayanti with the hope that it will bring some change in the society. It is an introspectional poem. Do comment and share if you like. Let us make India a country Bapu dreamt for. 


प्रेरणा : यह कविता अपने दैनंदिन जीवन में टकराने वाले कुछ विचित्र महानुभावों से प्रेरित है। ऐसे कई नमूने हमें आमतौर पर दिखते हैं। इस कविता में कुछ चुनिंदा उदाहरणों का ही सांकेतिक तौर पर जिक्र किया है। इस हास्य कविता के माध्यम से कुछ रोजमर्रा के गंभीर विषयों पर ध्यानाकर्षण करने का प्रयत्न किया है। 


अंधे, पर मनसे


ये कहीं भी दिखते, कहीं भी टकराते हैं

रास्तों पर, बाजार, सोसाइटी में

नुक्कड़ पर, गली में, गलियारों में

वैसे तो दिखने में, आम लोगों से ही दिखते हैं

इनकी नजर भी, ठीक ही होती है,

बुद्धि भी इनकी, ठीक ही होती है

मगर,  मन से वो अंधे होते हैं


कूड़ा दान के बाहर फैला हुआ, कचरा बतायेगा

कॉलोनी में कितने लोग, मन से अंधे होगे

चौराहेकी लाल बत्ती, सबको दिखती है

पर, इन्हे नहीं दिखती

इनकी हेलमेट हमेशा, हैंडल पर होती है

सर पर नहीं होती

कतार में लगने वाले, अपने नंबर पर आने वाले

इन्हें पिछड़े हुए लगते हैं, वो इन्हें मूर्खों में गिनते हैं

रेल्वे क्रॉसिंग पर बिनधास्त,

दाहिने-बाये से, बीच-बीच में घुसते हैं,

चक्काजाम करने में अपनी भूमिका, वो बखूबी निभाते है

पर इसकी इन्हें फिक्र नहीं,

वह समस्या तो दूसरों की है, इनकी नहीं,

रास्ता उल्टी तरफ से चलते-दौड़ते हैं

सही दिशा से आने वालों को, उल्टा ये ही आंखें दिखाते है

दिखता तो सब कुछ है, पर मन से अंधे जो है,


सार्वजनिक सुविधा और संपत्ति

इन्हें अपनी खुद की ही लगती,

देश, समाज, व्यवस्था, मन से अंधों के लिए

सब निरर्थक, सब बेकार‌ है

संकेतों, निर्देशो के पालन से, 

इनकी इज्जत निलाम हो जायेगी

'यहां पेशाब करना मना है'

'यहां थुंकना मना है'

'यहां पार्किंग मना है'

इनके लिए 'मना' का मतलब है 'मन मर्जी'

ये वही करेंगे जिसके लिए मनाई है

दिखता सब कुछ है, समझता भी सब कुछ है

पर, इन्हें गलती का एहसास होता ही नहीं

इनका इससे कोई नाता ही नहीं,

दूसरों की भावना, अंतर्मनको छूती ही नहीं, 

"निर्लज्जम् सदासुखी" इन्हीं को कहते है

अंतःकरण में, ये‌ अंधे होते हैं,


ये होते हैं, हर क्षेत्र में,

उद्योग, वकालत, राजनीति, नौकरी-पेशा, शिक्षण आदि

ये मिलते भी हैं सब जगह,

प्रवास, बस, सिनेमाघर, माॅल, मार्केट, रेलगाड़ी

ये हर वर्ग में दिखते हैं

अमीर-गरीब, जात-पात, धर्म

इनका बस एक ही नाता, वो है इनके कर्म

शब्दावली में इनके, सिर्फ एक शब्द नहीं, 'शर्म'

रिक्शा, ऑटो से लेकर मर्सिडीज कार तक

केले के छिलके, कोक और पानी की बोतल

खिड़की से ना फेंके, तो सफर इनका विफल

नदी के पानी में, बीच पुलिया में रुक कर

कचरे की थैली, अगर  ना करें खाली

मोक्ष प्राप्त इनको, होगा ही नहीं

अगर इन से, कहीं टकरा गये आप,

या तो  होगा झगड़ा, या लगेगी आपकी वाट,

मगर, मनसे अंधो का कभी, कम ना होगा ठांठ,


भेलपुरी के ठेले पर, 'ये कैसा दिया रे, फ्रेश है क्या?'

चखते चखते ही, आधा पेट भर लेंगे, 

और आखिर में, पानी पुरी खा कर, निकल लेंगे,

कुछ चिंधी चटक तो, 'पूरी कडक नहीं है!'

'साले, बासा माल खिलाता है क्या ?' 

यह कह कर बेशर्म, धीरे से खिसक भी लेंगे

इन्हें शो-ऑफ करने की, होती है बिमारी,

माॅल, रेस्टॉरंट, शोरूम के भारी भरकम बिल, 

चुपचाप भूगतान करेंगे,

लेकिन गरीब सब्जी वाले से, पचास पैसे के लिए,

फिजूल बहस, घंटों करते रहेंगे,

इन्हें दूसरों की गरीबी, कभी दिखाई नहीं देती,

अपना स्वार्थ और अहंकार, इन्हें सर्वोपरी है

इसके लिए कुछ भी करने, वो सदैव तैयार है,


कुछ सामूहिक कार्य तो, वें बड़े ही कमाल से करते हैं

बहती गंगा में, ये भी हाथ धो लेते हैं

सरकारी संपत्ति तोड़ना, जलाना, लुटना

पुलिसकर्मियों पर थूकना,  ईट- पत्थर फेंकना

सैनिकों पर हाथ उठाना, इन्हें दौडाना, मारना

तिरंगे का अवमान और देश का सिर झुकाना

मामूली वजह से, मॉब लिंचिंग करते वक्त

किसी कमजोर की, मार मार कर जान लेते वक्त

इनके सिर पर, समाज सेवा का भूत सवार होता है

छोटे-बड़े, महिला-पुरुष, पिडीत, वृद्ध

इनकी किसी पर जरा भी, दया नहीं होती

सामूहिक बलात्कार करने वाले 

किसी युवती पर एसिड फेंकने वाले

ये सब के सब है, एक ही माला के मोती

कानून, व्यवस्था, समाज, का इन्हें डर नहीं होता

इससे इन्हें कोई, मतलब नहीं होता

मन से, ये‌ अंधे जो हैं!



**

शब्द मेरे, भावना मेरी।


वसंतआरबी
(कर्नल वसंत बल्लेवार)



आवाहन: यह कविता अगर हर भारतीय तक पहुंची तो समाज में कुछ बदलाव जरूर देखने मिलेगा। अगर आप इन में से एक नहीं है तो इस हास्य कविता का आनंद लें और जरूर शेयर करें। अगर आप इनमें से एक है, तो बुरा मत मानिएगा। आप के अंदर का छोटा-सा बदलाव देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान साबित होगा। देश और समाज के हित में स्वच्छ भारत अभियान तहत जारी।

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