Thursday, November 12, 2020

सचमुच तू एक वीरांगना है

प्रेरणा: यह कविता एक सैनिक की पत्नी के जीवन से प्रेरित है, जो  सरहद पर देश की रक्षा करते हुए अपाहिज होकर, घर वापिस लौटा  है। पुरुष प्रधान समाज में बचपन से नारी हमेशा ही उपेक्षा, अपेक्षा, सम्मान, सहनशीलता और समर्पण के दायरे में मुल्यांकित होती रही हैं। एक अपाहिज हुये सैनिक की अर्धांगिनी का त्याग और समर्पण से उसपर होने वाले मानसिक तनाव एवंम समस्या का, इस शब्द रचना में उतारने का प्रयास किया है। यह कविता नारी के अदम्य साहस, संयम और सहनशीलता को दर्शाती है।

सचमुच तू एक वीरांगना है

बचपन

जब से तुम धरती पर आयी

तब से ही शुरु संग्राम तुम्हारा

मां के मन में था प्रश्न चिन्ह

मन ही मन खुश था पिता तुम्हारा


भाई बहनो में नोकझोक

हरपल भाई के हक मे जाती

गलती चाहे हो किसी की

सीख हमेशा तुझको मिलती


पढ़-लिखकर तुम क्या करोगी

हरपल तुम को सुनना पडता

सपने सपने ही रह जाते

कन्यादान तुम्हारा हो जाता


प्रथम परीक्षा


नव वधू के आगमन पर भी 

सबके मन उठता, प्रश्नचिन्ह

तेरे मन में भी उठा था अंबर

सब कुछ तू जो छोड़ के आयी

मां का आंचल, पिता का साया

सखी-सहेली, बहन और भाई

नये शहर में, नये सफर पर

नये राह में, नये मकां पर

निकल पड़ी तू  सहज अकेली

तेरे मन में था, प्रश्न चिन्ह

कौन करेगा मेरा रक्षण

पापा तो अब यहां नहीं है

कौन सुनेगा मेरी बकबक

मां भी तो अब यहां नहीं है


निकल पड़ी तू, सहज पटल पर

जैसे सैनिक, चला मिशन पर

यह तो थी तेरे जीवन की

प्रथम परीक्षा, प्रथम पराक्रम


फौजी जीवन


जन्म से ही है वीरांगना तू

मां शक्ति का रुप ही  है तू

चुन कर तूने, फौजी का दामन

देशप्रेम का, लगन दिखाया

एक सैनिक की शक्ति बनकर

वीरांगना का धर्म निभाया


जब वो जाता होगा सरहद पर

तुझपर क्या गुजरती होगी

अपने मन में उठे तूफां पर

कैसे तू संयम रखती होगी

नन्हों के मासूम प्रश्नोंका

कैसे निराकरण करती होगी


क्या है दिवाली, कैसी होली

तेरी दुनिया, अलग निराली

जब वो छूट्टी आता होगा

तभी वसंत और तभी हरीयाली

ऐसे बेमौसम बारीश में

कैसे सपने संजोती होगी


तेरे सपने, सब से अलग है

तेरी व्यथा भी, सबसे अलग है

सरहद की हर एक खबर पर 

तेरा दिल, धड़कता होगा

कैसा होगा, सैनिक मेरा

हरपल मन चिंतित रहता होगा

मेरा सैनिक वापस घर पहुंचे

सही सलामत  बस वो‌ घर पहुंचे

बस इतनी सी दुआ, तू करती होगी


वीरांगना


सैनिक की शहादत पर भी

गर्व से सीना तेरा फूलता है

दुश्मन से बदला‌ लेने की,

बच्चों को तू सीख देती है

दुश्मन से भिड़ने का जज्बा 

सीने में तू भी रखती है


जो शहीद हुआ, वो मुक्त हुआ

जीवन संघर्ष से परे हुआ

वो वीर गती को, प्राप्त हुआ

वो मातृभूमि का, हीरों हुआ

मृत्युंजयी बन वापिस लौटा जो

दुश्मन का सीना चीरकर जो

केसरिया लहरा कर लौटा जो

हॉंथ-पाॅंव खोकर लौटा जो

संघर्ष तो उसका, शुरू हुआ अब

कभी कमांडो ‌होता था जो

आज अपाहिज बना हुआ वो

उसको संयम तू देती है

एक समय का, योद्धा था जो

अब निर्भर हैं, पूरा तुझपर

उसकी जिम्मेदारी तुझपर

बच्चों की और, मात-पिता की

जिम्मेदारी, तुझपर भारी

अस्पताल और,  स्कूल-पढ़ाई,

घर, बजार और रिश्तेदारी

कैसे तू संजोती होगी

अपने ज़ख्म दिल में दफनाकर

तू सबको ढांढस देती है

धन्य है तू और तेरा जज्बा

तु सबकी एकमात्र शक्ति है

सचमुच तू एक, विरांगना है

सचमुच तू, एक विरांगना है।


वसंत आरबी
(कर्नल डॉ वसंत बल्लेवार)

आवाहन: कृपया इस कविता को नारी सम्मान में अत्यधिक शेअर करे।

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