Sunday, December 20, 2020

वो हमें आईना दिखाते है

प्रेरणा:   यह कविता बेघर बच्चों (Street Children) की जीवन से‌ प्रेरीत हैं।


लालबत्ती चौराहों पर जब भी

कुछ पल के लिए हम रुकते है

छोटे-बडे़ मासूम कूपोषीत भूखे बच्चे

एक उम्मीद से जब हमें देखते है

असल मे वो हमारे समाज का 

हमें आईना दिखाते है


मंदिर की सीढ़ियों पर

दरगाह की गलियारों पर

रेलवे के  प्लेटफार्म पर

होटल के बाहर, चाट के ठेले पर

अचानक, एक नाबालिग सी लड़की

गोद में बच्चा लिए, कमजोर, कुपोषित

एक उम्मीद से आपकी और

जब हांथ फैलाती है

वो हमारे समाज का 

हमें आईना दिखाती है


बद किस्मती ने इनका छत छीना

और मा-बाप का साया भी

सरकारी नितियों ने इनकी उम्मीद छिनी 

मेहनत से दो रोटी खुद कमाने की

बाल-मजदूरी कानून का भय इतना

काम देने तयार नहीं, एक पंक्चर की दुकान भी

भिख ना मांगे तो जिएं कैसे

चोरी ‌के‌ सिवा‌ कोई चारा नहीं

सभी है कहते, क्यों नहीं हो पढते

अच्छे खासे तो दिखते हो, 

भीख क्यो मांगते हो


लोग पुण्य की उम्मीद रखकर

आवारा कुत्तों को बिस्कुट तो खिलाते हैं

पर इंसान की औलाद को दुत्कारकर

पाप का घड़ा भी तो भरते हैं

बच्चे‌ भगवान का रूप है

ये कहते वें थकते नहीं

पर इन बेसहारा बच्चों को देखकर

किसी की रग जरा भी दुखती नहीं

चौराहों पर जब ये बच्चे भिख मांगते हैं

या चोरी करते हुए पीटे जाते है

तब, जिस तरह से हमें वो देखते है

वो हमें समाज का आईना दिखाते है


विज्ञान ने तो मंगल को चूम लिया

लेकिन संज्ञान अंधकार में गूम हूआ

इमारतों ने चूमा आसमान

पर बेघर बच्चों का छत गूम हूआ

सरकारों ने खूब नीतियां बनाई

इन बच्चों के हिफाजत की

पर बाल मजदूरी कानून ने

बेघर बच्चों के हैं पंख काटे

इन के जीने के हर अंग काटे

बाल कल्याण विभाग खूब पनपे

अशासकीय संस्थाए भी खूब पनपी

इन के बल, बाकी सभी विकसित हुए

बेघर बच्चे जहा कल थे, आज‌ भी वही रह गए

इनको जीने का, खुद कमाने का‌ हक दो

इन्हें ‌पढने का‌, खुद से बढ़ने का‌ हक‌ दो


ये‌ बेबस निराधार कूपोषित बच्चे

सड़क पर, जिस तरह से हमें देखते है

असल में वो हमारे समाज का 

हमें आईना दिखाते है।


वसंत आरबी
कर्नल वसंत बल्लेवार


आवाहन: मेरे विचार में बाल मजदूरी कानून ‌मे‌ संशोधन जरूरी है। मैं बाल मजदूरी के पक्ष में नहीं हूं। बेघर बच्चे  जिनके सिर पर मां-बाप का साया नहीं और जिनके ऊपर छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारी हो, ऐसे बच्चों का बाल मजदूरी कानून ने जीवन और भी दुश्वार कीया है। बच्चों की उम्र पढ़ने की ही होती हैं। पर कई ऐसे बच्चे हैं, जिन्हें मजबूरी में काम करना ‌जरूरी हो‌ जाता है। ऐसे बच्चों को इस कानून के डर से कोई काम नहीं देता और इन‌ बच्चो को भिख मांगना या ग़लत काम ‌करने के सिवा दूसरा विकल्प नहीं बचता। चोरी छुपे कोई काम देता भी है तो उन्हें पूरा मेहनताना नहीं मिलता।  अगर आप मेरे विचार से सहमत हैं और मेरी यह रचना आपके दिल को छूती हो तो आप इसपर टिप्पणी जरूर दें और इसे अत्यधिक शेअर करे ताकि समाज का यह आइना सरकार तक पहुंचे। 

जयहिंद।

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