My new poetic composition on farmer's condition and difficulties they are facing.
प्रेरणा: यह कविता देश के अधिकतर किसानों की हालात और मुश्किलात से प्रेरित है। यह कविता काल्पनिक नहीं है। एक किसान पुत्र होने के नाते मैंने खुद यह अनुभव किया है।
कई बरसों से यूं ही
बस यूं ही, इसी तरह
अब भी वही खड़ा हूं मैं
सभी कहते है,
मै अन्नदाता हूं
सृष्टि का पालनहार हूं
भूमि पुत्र हूं, विश्वकर्मा हूं
विश्व की अर्थ व्यवस्था,
कंधों पर ढोता हूं
पर फिर भी मै, यूंही
बरसो से इसी तरह
अब भी वही खड़ा हूं मैं
कोई कहते भूमिहार हूं मैं,
राज नीती करता नहीं।
मेहनतकश भी हूं मैं,
व्यवसाय मेरे बस में नहीं।
वो सब सलाह देते है मुझे
जो खेती का 'ख ' भी नहीं जानते
किसानी का पाठ पढ़ाते है मुझे
जो हल चलाना भी नहीं जानते ।
कोई दलाल है, तो कोई नेता
कोई व्यापारी है, कोई अभिनेता
मतलब नहीं हैं इनका दर्द से मेरे
सरोकार नहीं है इनका हालात से मेरे।
मेरी तकलीफों का इन्हे
जरासा अहसास भी नहीं
पर कंधों पर रखकर मेरे
बंदूक चलाते हैं यूं ही।
मेरे हालात पर ये सब
खेल खेलते हैं बस यूं ही
कई बरसों से इसी तरह
मैं खड़ा हूं बस, अब भी,
जहां था वही।
अजीब है मेरी दुर्गति और
अजीब है मेरी व्यथा
कभी बारिश बेमोसम, कभी सुखा
कभी खेल किस्मत का, कभी तुफां।
फसल घर ना पहुंचे जब तक,
हर पल सांस अटकती मेरी।
फसल कम हो गम तो है ही
ज्यादा हो तब भी, सांस अटकती है मेरी
क्यों की मेहनत मेरी बिकनी जो है
अब कौड़ीयों के मोल।
बस यूं ही, बरसों से, यूं ही
डरा सा रहता हूं मैं हरपल
इसी तरह, बस जी रहा हूं मैं
अब भी, जहां था
वही पर खड़ा हूं मैं
इस देश का किसान हूं मैं ।
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कर्नल डॉ वसंत बल्लेवार
आवाहन: किसानों के प्रति सिर्फ हमदर्दी काफी नहीं उनकी माली हालत सुधारने में सहयोग दें। स्वदेशी अपनाएं, स्वदेशी बने। आपकी प्रतिक्रिया जरूर दें और शेअर करे।
जय हिन्द।
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