प्रेरणा: यह एक हास्य-व्यंग कविता है। इस कविता के माध्यम से कुछ सामाजिक समस्या और बुराइयों पर ध्यानाकर्षण करने का प्रयास किया गया है। किसी भी जाति, धर्म, राजनितिक पार्टी, या सामाजिक व्यवस्था पर टीका टिप्पणी करने का उद्देश्य नहीं है।
बापू तेरे देश में यह कैसी आजादी है
गरीबों का जीना है दुश्वार, नेता थानेदार है
अच्छे ही थे दिन वो तब,
राजा निर्णय लेते थे
गुनाहगार को डर होता था,
हाथ पॉंव कट जाते थे
प्रजा की चिंता वह करता था
दुःख दर्द का हिस्सा बनता था
सही सलाहकार भी वही चुनता था
जनता के लिए वह लडता था
बरतानीयोने जुर्म तो किये,
पर फिर भी शासन करते थे
चाहे कुछ भी हो इरादे,
जनमत से वह डरते थे
'फूट डालो और राज करो'
अंग्रेजो ने निती अपनायी
आपस में करवाई लडाई
बदमाशों में खौफ था उनका,
क्योंकि बरतानी खुद ही मंजे थे
बापू तूने तंत्र बताया
आजादी का स्वप्न दिखाया
लोकतंत्र का मंत्र सिखाया
खुब सारे सपने संजोए,
मरमिटकर आजाद भी हुए
भ्रम सारा था दूर हुआ अब,
जब से हम आजाद हुए
वेशभूषा तो पुरी बदल गई
वर्दी की जगह अब खादी चढ़ गई
पर कुर्सी थी जो, वहीं पर रह गई
बीमारी तो कुर्सी में थी,
जो उसपर बैठा, उसके सर चढ गई
जन नेता थे तब वो बाहूबली बन गए
बाहुबली जो थे, अब नेता बन गए
अंग्रेजो ने बापू दिया था,
अन्ना को दिया आजादी ने
दोनो के थे नेक इरादे,
राम राज को फिर लाने
दोनो ने सपना देखा था,
मेरा देश महान हो
छुत-अछुत, ना जात-पात,
ना धर्म की लड़ाई हो
बापू का तो खून बहा, पर
अन्ना का था बहा पसीना
दोनो के जनआंदोलन से,
कई नेताओं का जन्म हुआ
पर सत्ता का ऐसा नशा चढ़ा,
सिर्फ गरीब ही हरपल सूली चढा
'फुट डालो और राज करो'
नेताओं ने 'वही' निती अपनायी
जात-पात और धर्म के बल पर
पूरे देश में आग लगाई
पूरा मुल्क तो बटा पड़ा है
हर गरीब मजबूर खड़ा है
हर किसान उलझन में फंसा है
फसल की किमत राख बराबर
और मत लाखों में बिक रहा है
संविधान के मंदिर में तो
धनवान और बलवान दिखता है
गरीब, किसान जहां खड़ा था
आजभी बेबस वही खड़ा है
अत्याचार तो वैसा ही है,
बस अत्याचारी बदल गये है
बरतानी तो पराये थे,
अब तो अपने ही खून चूस रहे है
बापू तूने देश को, किनसे दी आजादी है?
गरीबों का जीना है दुश्वार,
नेता थानेदार हुए है।
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तीर
कर्नल डॉ वसंत बल्लेवार